मिठास कड़वाहट की
Surjeet Kumar
Casa editrice: Surjeet Kumar
Sinossi
कितनी अजीब बात है ना, हम सब इतने व्यस्त है की कभी अपने आप से मिलने का समय ही नहीं मिलता।जब मिलता है तब थोड़ा विश्राम करने में बिता देते है। कभी थक कर सो जाते है, कभी सो कर थक जाते है। बहुत कुछ जानना चाहते है, बहुत कुछ अर्जित करना चाहते है। किन्तु खट्टे-मीठे पलो में जीवन को बस बिताते जा रहे है। ऐसा भ्रम सा होने लगा है जैसे भ्रम ही जीवन है। कोई एक कड़वी बात कह दे तो हम चार कड़वे बोल के साथ उस पर प्रहार करने को दौड़ते है। लेकिन कोई एक ज्ञान की बात करे तो हमारे पास केवल धन्यवाद ही होता है, या अनेकों बार धन्यवाद भी नहीं। हमें आवश्कता है कड़वाहट में मिठास को ढूँढ़ने की, हमें ज़रूरत है बिना किसी के जगाए जागने की, समय की मांग है स्वयं को पहचानने की, और भीतर की पुकार है भीतर झाँकने की। अकेले में कुछ सवालों ने मुझे झकझोरा था उन्हीं सब सवालों के जवाबों को पंक्तियों में सजा कर आप सब के पास पहुँचने की कोशिश कर रहा हूँ।